गत वर्षों की भाँति इस वर्ष भी संवाददाता डायरी का | प्रकाशन किया जा रहा है । यह अपने उददेश्य में कितना सफल हुई है, इसका निर्णय आपसब पर छोड़ दिया जाता है । पत्रकार परिचायिका में महासंघ के सम्मानित पदाधिकारियों, सदस्यों, और जिले की विभिन्न सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं के अधिकारियों के नाम व दूरभाष नम्बर सहेजने का प्रयास किया गया है । यह ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों के लिए विशेष उनके हित चिन्तन के लिए बनाई गई है । आप इसका मूल्यांकन करेंगे । आगामी अंक में सुधार के लिए अपने प्रांजल सुझाव दें जिससे हम उस पर अमल कर सकें, ऐसी अपेक्षा है। आप का जो अभूत पूर्व सहयोग मिला है उसके लिए हम आभारी हैं। परिचायिका का उद्देश्य अखबार जगत से जुड़े लोगों को परस्पर जोड़ने उनके दुःख-दर्द समझने एवं समस्याओं के निदान का प्रयास करने का है। समय अभाव के कारण हम जो सामग्री इसमें नहीं दे पायें है अथवा जिन पत्रकार साथियों का नाम व चित्र इसमें प्रकाशित नही हो पा रहा है उनसे हम अपेक्षा करगें कि वे इसे अन्यथा नहीं लेंगे। जहाँ कही इसमें त्रुटि रह गई होगी उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं । जो विभाग या संस्थान इस परिचायिका में स्थान नहीं पा सके हैं उनकी उपेक्षा हमारा कत्तई मन्तव्य नही है। बस केवल अल्प काल में जितना कुछ सहेज पाए वह सब आपके सामने है।
हम वसुधैव कुटुम्बकम भावना को सर्वोपरि मानते हैं, यदि कोई किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित है तो यह उसका अपना मन्तव्य है। सभी के लिए सब के द्वारा सबकी ओर से यह सामूहिक प्रयास आपको समर्पित कर रहे हैं। विगत 22 वर्षों की यात्रा में अनेक झंझावात झेलने पड़े हैं और आगे भी इसकी सम्भावना है, उसके लिए हम तैयार भी हैं। बाधाओं को पार करने का हमारा साहस, हमारे साथियों का चिरंतन संकल्प और उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति हमें सदैव प्रेरित करती रहती है। जब भी कभी आपका सुझाव सामने आएगा मै उसको सिरमाथे लगाऊँगा। आपके उत्साह से संगठन और परिचायिका को ऊँचाई मिले, यह अपने उद्देश्यों को सफल कर सके, यही ईश्वर से प्रार्थना है। हम किसी के विरोधी नहीं अपितु सहयोगी बनकर पत्रकार हितों की रक्षा के लिए संघर्ष करना चाहते हैं। हमारा काम तो सिर्फ और सिर्फ जोड़ने का है तोड़ने का नहीं, यदि कोई हमें अपना विरोधी मानता है तो यह उसकी निजी मान्यता है। हम तो सबको साथ लेकर चलते हैं और आगे भी चलते रहेंगे। हमारे जो साथी मामूली सी बात को बतंगड़ बनाकर संगठन छोड़ देते हैं, वे अपने साथ तो अन्याय करते ही हैं, साथ ही समूह के साथ भी, यह विचारणीय है। सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो वह भूला नहीं कहा जाता। अस्तु जो किसी कारण वश चले गये थे उनका पुनः पुनः स्वागत है।
इस वर्ष प्रत्येक तहसीलों में हमें संतोषजनक सफलता मिली है। सदैव आपका-
डॉ० भगवान प्रसाद उपाध्याय
सम्पादक